प्रशिक्षण प्रोग्राम
हस्तशिल्पियों के कौशल विकास की प्रशिक्षण योजना
हस्तशिल्प क्षेत्र में परम्परागत विधा से हो रहे कार्य को धीरे -धीरे बेहतर तकनीकी से कराना एवं इस हेतु उनके कौशल विकास हेतु की दृष्टि से प्रशिक्षण कराना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है। यह योजना प्रदेश के हस्तशिल्प के विकास वाले हस्तशिल्प बाहुल्य वाले जनपदों में संचालित की जा रही है। इस योजना का लाभ 18 से 35 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्ति पात्र होते हैं किन्तु अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्तियों को अधिकतम आयु में 5 वर्ष तक की शिथिलता दी जाती है परिवार की वार्षिक आय अथवा न्यूनतम् शैक्षिक अर्हता का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है। योजनान्तर्गत परम्परागत शिल्पकारों के कौशल उन्यन हेतु प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें नवीनतम तकनीक एवं उन्नत किस्म के औजारों व उपकरणों के उपयोग भी सिखाये जा रहे हैं। यह प्रशिक्षण भारत सरकार के राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार/राज्य हस्तशिल्प पुरस्कार व दक्षता पुरस्कार प्राप्त शिल्पकारों तथा विकास आयुक्त हस्तशिल्प द्वारा शिल्पगुरू की उपाधि से अलंकृत शिल्पकारों के घरों पर उन्हीं के व्यक्तिगत निर्देशन व संरक्षण में संचालित की जा रही है।
इस योजनान्तर्गत प्रशिक्षक को मानदेय के रूप में रू0 4,000/- मासिक मानदेय एवं रू0 1,000/- कच्चेमाल हेतु प्रदान किया जाता है तथा प्रशिक्षार्थियों को रू0 500/- मासिक मानदेय के रूप में प्रदान किया जाता है। एक बैच में 10 प्रशिक्षार्थी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं प्रशिक्षण कार्यक्रम 6 माह का होता है। इस प्रकार के प्रति वर्ष कुल 15 प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करवाये जाते हैं। वर्ष 2007-08 से 2011-12 में अब तक योजनान्तर्गत 750 प्रशिक्षार्थी प्रशिक्षित हो चुके हैं। चालू वित्तीय वर्ष 2011-12 में निम्न जनपदों में प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करवाये गये है
वाराणसी (स्टोन कार्विंग), आगरा (संगमरमर पच्चिकारी) झाँसी (सिल्क साड़ी) बरेली (बेंत बाँस) गोरखपुर (टेराकोटा) बाँदा (सजर पत्थर) आजमगढ़ (ब्लैक पाटरी) बुलन्दशहर (खुर्जा) (पाटरी) फर्रूखाबाद (जरी जरदोजी) ललितपुर (पीतल कला) चित्रकूट (लकड़ी के खिलौने) बहराइच (गेंहूँ के डन्ठल की कला) महोबा (पत्थर पर नक्काशी) कानपुर नगर (ताड़ के पत्ते की कला) इटावा (वीड्स)।
सहयोगीय व्यपारियों के अधीन डिजाइन विकास हेतु प्रशिक्षण की योजना
हस्तशिल्प क्षेत्र में परम्परागत विधा से हो रहे कार्य को धीरे धीरे बेहतर तकनीकी से कराना एवं इस हेतु उनके कौशल विकास व बाजार के अनरूप डिजाइने विकसित करने व अपनाने की दृष्टि से प्रशिक्षण कराना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है। इस योजना का लाभ 18 से 35 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्ति पात्र होते हैं किन्तु अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्तियों को अधिकतम आयु में 5 वर्ष तक की शिथिलता दी जाती है। परिवार की वार्षिक आय अथवा न्यूनतम् शैक्षिक अर्हता का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।
इस योजनान्तर्गत प्रशिक्षक को मानदेय के रूप में रू0 2,000/- मासिक मानदेय एवं प्रशिक्षार्थियों को रू0 500/- मासिक मानदेय के रूप में प्रदान किया जाता है। एक बैच में 10 प्रशिक्षार्थी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं प्रशिक्षण कार्यक्रम 6 माह का होता है। इस प्रकार के प्रथम तीन वर्षो में प्रतिवर्ष कुल 24 प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा अन्य वर्षो में प्रतिवर्ष कुल 22 प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करवाये गये हैं। इस योजनान्तर्गत वर्ष 2007-08 से वर्ष 2011-12 तक कुल 1160 प्रशिक्षार्थियों को प्रशिक्षित करवाया जा चुका है। चालू वित्तीय वर्ष 2011-12 में निम्न जनपदों में प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करवाये गये है:-
आगरा (पत्थर की मूर्तियाँ), मुरादाबाद (मेटल हस्तशिल्प) लखनऊ (चिनक वर्क) झाँसी (हैण्डलूम टेक्सटाइल झाँसी (मऊरानीपुर)) मथुरा (मिनिएचर पेंटिंग) आजमगढ़ (बनारसी साड़ी) बुलन्दशहर (खुर्जा) (पाटरी) फिरोजाबाद (ग्लास आर्ट) ललितपुर (हैण्डलूम टैक्सटाईल) बिजनौर (नगीना) (वुड कार्विंग) अलीगढ़ (मेटल आर्ट) मेरठ (वुडन एवं ग्लास वीड्स) मैनपुरी (तारकशी) रामपुर (पतंग कला) इलाहाबाद (जूट हस्तशिल्प) गाजीपुर (जूट वाल हैंगिंग) गोण्डा (बेंत बाँस) कानपुर नगर (पंजादरी) गाजियाबाद (ब्लाक मेंकिंग) बाराबंकी (ज़री जरदोजी) सहारनपुर (वुड कार्विंग) मऊ (बनारसी साड़ी)।